Kisan Aandolan Or Rakesh Tikait??
Rakesh Tikait के नाम से आज लगभग भारत में हर एक इंसान परिचित हैं। पिछले एक साल में इन्होंने बहुत ज्यादा लाइमलाइट पाई हैं। हर समय न्यूज में बने रहना इन्हे अच्छे से आता हैं।
Rakesh Tikait की एक खासियत हैं की ये पूरे देश में धरने कहां हो रहे हैं ये पता चलते ही वहीं पहुंच जाते हैं चाहे वो किसी मुद्दे के लिए हो या नही।
Rakesh Tikait लगभग पिछले एक साल से दिल्ली के बॉर्डर पर हो रहे किसान आंदोलन में शामिल हैं, और अक्सर किसी ना किसी मुद्दे के कारण मीडिया में छाए रहते हैं।
दिल्ली में लॉकडाउन खुलने के बाद फिर से दिल्ली के बॉर्डर पर किसानों का जमावड़ा होना शुरु हो चुका हैं।
दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन के बारे में बात करने से पहले हम थोड़ा राकेश टिकैत के बारे में जान लेते हैं।
Who Is Rakesh Tikait ??
Rakesh Tikait उत्तरप्रदेश के मुज्जफरनगर के पास के एक गांव के रहने वाले हैं। राकेश टिकैत देश के बहुत बड़े किसान नेता स्वर्गवासी श्री महेंद्र जी टिकैत के दूसरे पुत्र हैं। इनके बड़े भाई का नाम चौधरी नरेश टिकैत हैं जो भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष हैं और साथ ही साथ पश्चिमी उत्तरप्रदेश की एक सबसे बड़ी खाप पंचायत के मुखिया भी हैं।
राकेश टिकैत के पिताजी महेंद्र जी टिकैत ने राजीव गांधी के प्रधानमंत्री पद पर रहने के समय एक बहुत बड़े किसान आंदोलन का नेतृत्व किया था जो आज तक के सबसे बड़े आंदोलनों में शामिल हैं।
महेंद्र जी टिकैत की मांग थी कि किसानों के लिए एक ऐसी व्यवस्था की जाए जिससे वो अपनी फसल को कहीं भी बेचने के लिए मुक्त रहे।
Rakesh Tikait Kese Jude Kisano Ke Sath??
राकेश टिकैत अपने पिता के साथ किसान आंदोलन में शामिल होने से पहले दिल्ली पुलिस में नौकरी करते थे परंतु बाद में उन्होंने पुलिस की नौकरी छोर दी और अपने पिता श्री महेंद्र जी टिकैत के साथ आंदोलन में शामिल हो गए।
उत्तरप्रदेश के कुछ हिस्सों में इनके परिवार का राजनीति में वर्चस्व रहा हैं। जब महेंद्र जी टिकैत दिल्ली में किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे उसका प्रभाव इतना ज्यादा था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गवासी श्री राजीव गांधी खुद चलकर आंदोलन स्थल तक आए और महेंद्र जी टिकैत से वार्तालाप कर के आंदोलन को रूकवाया।
वर्तमान में देश की राजधानी दिल्ली के बॉर्डर पर चल रहा किसान आंदोलन राकेश टिकैत के नेतृत्व में चल रहा हैं ऐसा हम कह सकते हैं क्योंकि जनवरी में लाल किले पर हुई हिंसा के बाद में ये आंदोलन एक तरह से खत्म ही हो चुका था परंतु इस रात राकेश टिकैत के आंसुओ ने इस आंदोलन का बचा लिया।
दिल्ली के बॉर्डर पर कई किसान संगठन जमा हो रखें है ओर इनका आंदोलन करने का मुख्य मुद्दा क्या हैं उससे ये खुद ही भटक चुके हैं, अब तो ऐसा लग रहा हैं कि बस ये आंदोलन जबरदस्ती चलाया जा रहा हैं।
Delhi Me Chal Rahe Kisan Aadlndolan Ka Mukhya Mudda Kya Hain??
शुरुआत में इस आंदोलन का मुद्दा था की नए लागू किए कृषि कानून में एमएसपी के बारे में लिखित में चाहिए परंतु बाद में समय के साथ साथ उनकी ये मांग भी बदल गई।
राकेश टिकैत वही नेता हैं जिन्होंने जब ये कृषि कानून लागू किए थे तब किसानों के हित में कहकर सरकार का समर्थन किया था परंतु बाद में अचानक ऐसा क्या हुआ की राकेश टिकैत इन कानूनों के बिल्कुल विरोध में खड़े हो गए??
सरकार ने किसान नेताओं को कई बार वार्तालाप के लिए आमंत्रित किया परंतु हर बार किसी न किसी कारण से उसका कुछ भी निष्कर्ष नहीं निकला।
जब नए कृषि कानूनों से देश के अधिकांश किसान खुश हैं तो फिर ये दिल्ली में धरने पर बैठे लोग कोन हैं??
किसान तो अपने खेतों में फसलों में व्यस्त हैं उसके पास इतना समय कहां हैं की वो दिल्ली आए और 10 महीने तक आंदोलन में बैठे। किसान की आय का मुख्य स्त्रोत खेती होती हैं और अगर किसान खेती नही करेगा तो वो अपने परिवार का खर्च केसे चलाएगा??
मेरी नजरो में कोई भी इंसान अपने जीवन के 10 महीने बिना किसी कमाई के अपने परिवार का पेट नही पाल सकता ,अगर उस इंसान को अपने खर्चे निकालने है तो कमाई तो करनी ही पड़ेगी। हर आम किसान राकेश टिकैत की तरह करोड़पति तो नही हो सकता ना??
दिल्ली में धरने पर क्या कोई आम किसान भी बैठा हैं??
हो सकता हैं कुछ बैठे हो वो ये भी हो सकता हैं की उनको इन कृषि कानूनों के बारे में कुछ भी नही पता हो और साथ देने के लिए आ चुके हो, भारत में काफी क्षेत्र आज भी ऐसे हैं जहां शिक्षा का स्तर बहुत कम हैं, लोगो को किसी कानून को समझने के लिए बहुत मुश्किल होती हैं।
Kya Ye Farmer Protest Pre Planning Ke Sath Start Hua Tha??
क्या आंदोलन केंद्र सरकार के विरुद्ध एक राजनीतिक षडयंत्र हैं??
हो सकता हैं,
इसमें भी मना नही किया जा सकता और खुद राकेश टिकैत की इसमें कितनी बड़ी साझेदारी हैं ये कुछ कहा नहीं जा सकता। जब राकेश टिकैत के बड़े भाई और राष्ट्रीय किसान यूनियन के अध्यक्ष श्री नरेश जी टिकैत ने किसान आंदोलन को बंद करने का एलान कर दिया था तो फिर राकेश टिकैत कि ऐसी कौनसी जिद्द रही होगी जिसके कारण वो अपने भाई के विरुद्ध भी चले गए।
इस आंदोलन को निरंतर नया रूप देने का प्रयत्न किया जाता हैं परंतु आज तक ये समझ में नहीं आया की देश का आम किसान इस आंदोलन के समर्थन में क्यों नही हैं जब ये आंदोलन ही किसानों के नाम पर हो रहा हैं तो।
राकेश टिकैत के कुछ पुराने साथी हैं जो इनके संगठन के साथ महेंद्र जी टिकैत के समय से जुड़े हुए थे परंतु इन कृषि कानूनों के मुद्दो पर ऐसा क्या हुआ को वो पुराने साथी भी संगठन को छोड़कर चले गए।
राकेश टिकैत के ऊपर विदेशी संगठनों से जुड़े होने के आरोप लगते आए हैं वो भी तब से जब से ये आंदोलन शुरू हुआ हैं ,इनके संगठन के कुछ पुराने साथियों ने लाइव मीडिया इंटरव्यू में इस मुद्दे से संबधित कुछ सवाल पूछे तो राकेश टिकैत इंटरव्यू को बीच में छोड़कर चले गए।
क्या ये आंदोलन अब उत्तरप्रदेश आम विधानसभा चुनाव तक चलेगा??
हालातों को देखकर तो यही लगता हैं की केंद्र सरकार तो इस मामले पर कभी भी इन दलालों के सामने नहीं झुकने वाली, और कहीं ना कहीं ये बात ये सारे किसान नेता भी जानते हैं कि ये तीनो कृषि कानून किसानो के हित में हैं परंतु फिर भी केंद्र सरकार से विरोध होने के चलते जिद्द पर आकर आंदोलन में बैठे हैं।
राकेश टिकैत इस किसान आंदोलन से पहले नेशनल मीडिया में कभी इतने लाइमलाइट में नही आए परंतु जैसे ही ये आंदोलन सक्रिय हुआ राकेश टिकैत और योगेंद्र यादव जैसे कई आंदोलनजीवी इस आंदोलन को अपने नाम कर बैठे और लाइमलाइट में आ गए।
जब ये तीनो कानून पास हुए थे संसद में उस समय इस कानून के ऊपर कई किसान नेताओं के विचारो को कई समाचारपत्र में छापा गया था।
उस समय के कई समाचारपत्र में योगेंद्र ओर राकेश टिकैत जैसे नेताओं के इन कानूनों पर खुशी इजहार करते हुए लेख छपे थे, और ये इन कानूनों के समर्थन में थे।
Relationship With Old Mates??
इनके कई पुराने साथियों का मानना हैं की राकेश टिकैत और इन जैसे कई लोगो को ये आंदोलन चालू रखने के लिए आगे कहीं न कहीं से फंडिंग मिल रही हैं, हो सकता हैं कि मिल भी रही हो, हम कोनसा देखने गए हैं परंतु ये तो हैं की बिना खर्चा मिले इतने दिन तक कोई भी अपना समय खराब नही करेगा ये जानते हुए की इन कानून से कोई नुकसान नहीं हैं आम किसान को।
नुकसान हैं पर हैं उन आड़तीयो का और उन दलालों का जो मंडियों में बैठकर गरीब किसान की पूरे सालभर की मेहनत को कमिसन के रूप में चाट जाते हैं।
अब किसान अपनी फसल कहीं भी बेच सकता हैं वो मुक्त हैं अब इन मंडियों के जंजाल से, आप खुद अपने निजी लेवल पर पता करा सकते हैं इन अनाज की मंडियों में ज्यादातर दलाल किसी नेता के खास चमचे या रिश्तेदार ही मिलेंगे।
देश के आम किसान की कमर दिन प्रतिदिन तोड़ी जा रही थी इन दलालों के द्वारा जिस पर लगाम कसने की कोशिश की हैं वर्तमान सरकार ने और उसी का विरोध कर रहे है ये राजनेतिक बिचौलिए और दलाल।
ये चुनाव अब उत्तरप्रदेश आम विधानसभा चुनाव तक चलेगा और उसके बाद फिर से बिखर जाएगा क्योंकि पैसे तो उसी के लिए मिलते हैं न की चुनावो के समय केंद्र सरकार के लिए किसानों के नाम पर मुश्किल पैदा करो।
Kisan Aandolan Or Khalistan Relationship??
जब से ये आंदोलन शुरू हुआ हैं इसमें सबसे ज्यादा भागीदारी पंजाबियों की रही हैं। जितने किसान दिल्ली आ रखे हैं बॉर्डर पर आंदोलन करने के लिए उनका लगभग आधे से ज्यादा हिस्सा केवल पंजाब से आए हुए सरदारों का हैं। समय समय पर इस आंदोलन से खालिस्तान समर्थित नारे भी लगते रहें हैं और इस बात से ये खुद भी इंकार नहीं कर सकते क्योंको जो गणतंत्र दिवस के दिन दिल्ली के लाल किले पर हुआ वो सारे संसार में देखा हैं की केसे खालिस्तान समर्थित इन दलालों ने देश के शौर्य के प्रतीक लाल किले का अपमान किया और तिरंगे का अपमान कर के वहां खालिस्तानी समर्थित झंडा लगाया।
इस आंदोलन में प्रयोग में आने वाले समान के लिए ज्यादातर भारत के बाहर बैठे व्यापारियों ने पैसे दिए हैं, अब ये समझ में नहीं आता कि जो लोग भारत में अब प्रवासी की हैसियत से भी नही आते, जिनका सारा धंधा ओर परिवार कनाडा जैसे देश में रहते हैं,जिनके पास अनगिनत पैसा हैं परंतु ये पैसा कभी भारत में आने वाली प्राकृतिक आपदाओं के समय सहायता के लिए कभी काम में नही आया परंतु जब देश में आंतरिक विरोध की स्तिथि पैदा करने के लिए कुछ दलाल धरने पर बैठे तो उनके खर्च के लिए बेहिसाब पैसा दिया गया।
ये सारे घटनाक्रम बताते हैं की हो सकता हैं कि ये किसानों और किसानी के नाम पर देश में चल रहा सबसे बड़ा घोटाला हो और आप इसे आज से एक या दो साल बाद समझ पाए जैसे अब शाहीन बाग के बारे ने जनता जान चुकी हैं।
ऐसे आंदोलन से देश में हालत बिगाडने की कोशिश करना भी देश विरोधी गतिविधियों में सम्मिलित होता हैं।
इन दलालों के साथ इस आंदोलन में कुछ भोले भाले किसान भी बैठे हैं जो शिक्षा के अभाव में इन कानूनों का पूरा मतलब नहीं समझ पाए हैं और इन दलालों के साथ गलती से इस आंदोलन में सम्मिलित हो गए। उन बड़े बुजुर्गो को इन दलालों से मुक्त करवाकर देश को सुरक्षा एजेंसियों को इन पर रात दिन कड़ी नजर रखनी चाहिए।
इस किसान आंदोलन के नाम पर कुछ तो गलत पक रहा हैं इन दलालों के दिमाग में जिसका पता लगाना जरूरी हैं।
किसानों के साथ हम और सरकार दोनो हैं।
जय हिंद जय भारत।