आज के इस लेख में हम बात करेंगे महाभारत काल की एक ऐसी घटना की जो महाभारत के सबसे बड़े योद्धा के साथ हुई थी, जैसा कि आप सब जानते हैं महाभारत का युद्ध एक ही परिवार के भाइयों के अंदर हुआ था।
Mahabharat Real Story Of Bhim
महाराज धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव और महाराज धृतराष्ट्र के छोटे भाई पांडु के पुत्रों पांडवों के बीच में यह युद्ध हुआ था, माना जाता है कि महाभारत का युद्ध इतिहास का आज तक का सबसे बड़ा युद्ध है जो करीब 18 दिन तक चला था और इसके अंदर 5 अरब से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी।
आज भी कुरुक्षेत्र की धरती के अंदर खून के निशान और हजारों साल पहले की मिट्टी के अंदर दबी हुई तलवारें कई बार पाई जाती हैं।
महाभारत के युद्ध के समय कुरुक्षेत्र की धरती पर चारों तरफ मानव अंगों का ढेर लग गया था, कहीं पर किसी के हाथ पैर कटे हुए पड़े थे तो कहीं पर किसी का सर कटा पड़ा था
महाभारत के युद्ध के बारे में तो हम सभी जानते हैं लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि जो महाराज धृतराष्ट्र के पुत्र थे सो कौरव, इन सब की मौत भीम के हाथ से हुई थी।
भीम के अंदर 10000 हाथियों के जितना बल हुआ करता था। जब द्रोपदी का चीर हरण हस्तिनापुर की भरी सभा के अंदर हुआ था, उसी समय पर इस महाभारत युद्ध की पटकथा लिखी जा चुकी थी।
भीम ने उस समय पर एक शपथ ली थी कि सारे के सारे कौरवों को भीम अपने हाथों से मारेगा और यही काम उसने किया था।
महाभारत के युद्ध में हर एक योद्धा का बहुत अच्छा योगदान रहा था, अर्जुन हो युधिस्टर हो नकुल हो या सहदेव हो परंतु सभी कौरव भाइयों को मारने वाला अकेला भीम था।
उन सभी कौरव भाइयों के प्राण अंत में भीम ने ही लिए थे। हस्तिनापुर के राजमहल में चल रही ध्युत सभा में द्रोपदी के केस पकड़कर भरी सभा में लाने वाले दुशासन को जब भीम ने मारा था तो वहां पर मौजूद सभी लोग चौक गए थे कि आखिर भीम ऐसा कैसे कर सकता है??
परंतु भीम ने उसी सभा में कसम खाई थी कि वह द्रोपदी के बालों को दुशासन की छाती के रक्त से धोएगा और दुशासन की छाती का रक्त पिएगा।
भीम ने उसके हाथ पैर उखाड़ कर उसकी छाती को चीर कर उसका खून भी पिया और वहीं युद्ध भूमि के अंदर द्रोपदी को लाकर उसके बालो को दुशासन के रक्त से धोया था।
जब सभी कौरवों की मृत्यु हो चुकी थी और महाभारत का युद्ध पांडवों ने जीत लिया था, उसके कुछ समय बाद उन सब ने हस्तिनापुर जाने का निर्णय लिया और अपना अधिकार महाराज धृतराष्ट्र से वापस लेने का निर्णय लिया।
हस्तिनापुर के सम्राट महाराज धृतराष्ट्र और माता गांधारी ने उनको हस्तिनापुर में खुद भी आमंत्रित किया था ताकि वह युधिष्ठिर को राजपाट सौंपकर सन्यास धारण कर सकें।
पांचो पांडव, द्रौपदी और भगवान श्री कृष्ण जी के साथ हस्तिनापुर के लिए निकल पड़े। हस्तिनापुर में पहुंचकर जब उनका स्वागत किया गया सभी भाइयों ने वहां पर मौजूद अपने से बड़े सभी लोगों को प्रणाम किया और उनका आदर सम्मान किया।
Dhritarashtra tried to Kill Bhim
धृतराष्ट्र पांचो पांडव पुत्रों से मिले परंतु भीम के मिलने के समय कुछ ऐसी घटना हुई जो कि एक इतिहास ही बन गई। पुरातन भारतीय धार्मिक ग्रंथों में लिखा गया है कि धृतराष्ट्र आंखो से अंधा जरूर था परंतु वह भी एक बड़ा योद्धा था और उसके शरीर के अंदर भी बहुत ज्यादा ताकत थी।
जब युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल, सहदेव महाराज से मिले तो उसने किसी को कुछ नहीं कहा परंतु जैसे ही भीम धृतराष्ट्र से मिलने के लिए गए, उनको प्रणाम किया उनके चरण छुए तब धृतराष्ट्र ने भीम से कहा कि “भीम मैं तुम्हें गले लगाना चाहता हूं”।
श्री कृष्ण भगवान को सबसे बड़ा कूटनीतिज्ञ इसलिए नहीं माना जाता है कि उन्होंने महाभारत के युद्ध को रोक सकने की क्षमता होने के बावजूद भी नहीं रोका जबकि उनको इसलिए माना जाता है कि वह अधर्म को खत्म कर धर्म का मान बढ़ाना चाहते थे।
जब भीम से गले मिलने के लिए धृतराष्ट्र आगे बढ़े और उनसे गले मिलने के लिए भीम आगे बढ़ रहा था तब अचानक से भगवान श्री कृष्ण ने भीम को उन से मिलने के लिए रुकने का इशारा किया और पहले से बनाई हुई एक विशालकाय भीम की मूर्ति को आगे कर दिया।
धृतराष्ट्र जब उस मूर्ति से भीम समझकर, भीम से गले मिले तो उन्होंने उस धातु की मूर्ति को भीम समझ कर गले लगाया और गले लगाते ही उनका पुत्र वियोग उनके मन में आ गया और वह बहुत ज्यादा विचलित हो गए।
जब धृतराष्ट्र के शरीर के अंदर बहुत ज्यादा ताकत थी जैसा कि आपको मैंने बताया है तो उसने भीम की उस मूर्ति को गले लगाकर इतना जोर से जकड़ा कि उस मूर्ति का चूरा चुरा हो गया।
आप खुद सोचिए कि एक धातु की मूर्ति को कोई इंसान गले लगाकर दबाकर तोड़ना चाहे तो क्या वह तोड़ सकता है?? आज के समय में आप सब का जवाब शायद यही होगा कि नहीं किसी में भी इतनी ताकत नहीं है कि एक धातु की मूर्ति को कोई आदमी अपने शरीर की ताकत से तोड़ सके और उसका चुरा चुरा कर सके परंतु महाभारत काल के अंदर वीरों के अंदर इतनी ज्यादा ताकत हुआ करती थी कि वह इस काम को कर सकते थे और भीम जैसे शक्तिशाली और भारी-भरकम शरीर वाले इंसान की मूर्ति भी कितनी भारी होगी आप खुद इसका अंदाजा लगा सकते हैं।
उस मूर्ति का भी चुरा चुरा हो गया जब धृतराष्ट्र ने पुत्र वियोग के अंदर उसे जोर से जकड़ लिया, उन्हें इसके बाद एहसास हुआ कि आखिर भीम भी तो मेरा पुत्र ही है। मेरे अनुज पांडु का यह पुत्र है, और मैंने उसे भी मार दिया।
इस बात पर वह रोने बिलखने लगे तब भगवान श्रीकृष्ण ने उनसे कहा कि आप ने भीम को नहीं मारा है, वह भीम की प्रतिमा थी। मुझे पहले से ही पता था कि पुत्र वियोग के कारण आपकी भावनाएं विचलित हो सकती है। इसलिए मैंने भीम की जगह पर भीम की एक मूर्ति को आगे कर दिया था, जिसे आप भीम समझ कर चुरा चुरा कर बैठे। आपका वियोग भी इस बहाने निकल गया और आपका मन भी शुद्ध हो गया। धृतराष्ट्र ने भीम और सभी पांडवों से कौरवों के किए गए पाप की क्षमा मांगी और द्रौपदी से भी उन्होंने क्षमा मांगी की भरी सभा के अंदर, उसके साथ इतिहास का सबसे बड़ा अन्याय हुआ था।
धृतराष्ट्र और गांधारी, पांडू पुत्र और द्रौपदी से उम्र और कद दोनों में बड़े थे इसलिए उन्होंने उन्हें माफ कर दिया था।
धृतराष्ट्र ने इसके बाद अपना सारा राजपाट युधिष्ठिर को सौंप कर जंगलों में सन्यास धारण करके तपस्या करने के लिए निकल गए।
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