द्रविड़ आर्यन में हिंदुओ को किसने बांटा??| IIT Kharagpur Calander 2022| Mount Kailash| Hinduism|

India विविधता में एकता वाला देश हैं। हमारे देश में कई धर्मो के लोग सभी के साथ मिल जुल कर हजारों सालों से रहते आए हैं। समय के साथ साथ आने वाले विदेशी आक्रांताओं ने भारत में रहने वाले हिंदुओ में ही आपस में मतभेद करवा कर इन्हे लड़ा दिया।

विदेशी आक्रांता आए और उन्होंने भारतीयों के दिमाग में यह डाल दिया कि द्रविड़ भारत में रहने वाले मूलनिवासी थे जबकि आर्य विदेशी थे जो ईरान की धरती से आए थे।
यह थ्योरी कई सालो तक देश के अंदर जहर घोलती रही और इसे बढ़ावा दिया वामपंथी इतिहासकारों ने, जिन्होंने यह साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी की ब्राह्मण और आर्य विदेशी थे। 

Dravid – Aaryan Theory

भारत के हिंदुओ में जहर घोल दिया गया उन्हे अलग करने के लिए ताकि ये अपना काम कम बखूबी कर सके उन्हें आपस में लड़ा कर।
भारत के प्रमुख तकनीकी संस्थानों में से एक IIT Khadagpur के वैज्ञानिकों ने हाल में ही एक शोध के द्वारा यह सिद्ध किया हैं की आर्य कोई विदेशी नही थे बल्कि भारत के ही रहने वाले थे।।
आर्यों को विदेशी बताने का कार्य विदेशी मुगल आक्रांताओं और वामपंथी इतिहासकारों ने हिंदू धर्म के अस्तित्व को दबाने के लिए किया।
IIT Kharagpur के वैज्ञानिकों ने वैज्ञानिक और ऐतिहासिक सबूतों के साथ यह पेश किया हैं की द्रविड़ आर्यन थ्योरी केवल एक झूट हैं जो विदेशी आक्रांताओं और वामपंथी इतिहासकारों द्वारा फैलाया गया हैं। 
आर्य इसी धरती के निवासी थे। IIT Khadagpur ने अपना एक कैलेंडर प्रकाशित किया हैं 2022 का जिसमे उन्होंने पूरे सबूतों के साथ वामपंथी इतिहासकारों द्वारा लिखी गई आर्यन द्रविड़ थ्योरी का खण्डन किया हैं।

Aaryan kon the??

कैलाश पर्वत सिंधु घाटी सभ्यता की मूल सिंधु नदी का भी उद्गम क्षेत्र हैं। वैज्ञानिक प्रमाणों की माने तो कैलाश वाले ग्लेशियर से सिंधु नदी पूर्व भारत की ब्रह्मपुत्र नदी ये सब यहीं से निकली हैं और नदी के किनारे किनारे आर्यों ने अपना निवास स्थान बनाया और भारत के निर्माण में एक अभूतपूर्व योगदान दिया।
आर्यों को विदेशी बताने के लिए बहुत से ऐतिहासिक छेड़छाड़ की गई थी जो उन्ही सब वामपंथी इतिहासकारों और उन्हें समर्थन करने वाले वामपंथी नेताओं और सरकारो ने की थी।
भारत के वैदिक इतिहास का एक बहुत गहरा इतिहास रहा हैं जिसे दबाकर विदेशियों ने भारत को नीचा दिखाने में कोई कसर नही छोड़ी। इस कार्य के उनका साथ दिया था इसी देश के रहने वाले गद्दारों ने।
Newton ने जो परमाणु का सिद्धांत दिया था वह आज से हजारों साल पहले भारत में हुए महा ऋषि कणाद ने वर्तमान सभ्यता के उत्थान से हजारों साल पहले ही दे दिया था।
Newton और अन्य कई विदेशी वैज्ञानिकों ने भारत से शोध चुराए और उन्हे अपना नाम मात्र दे दिया।
इस बात पर कई आधुनिक विचारधारा वाले भारतीय विश्वास नही करते हैं क्योंकि ये केवल सबूतों के साथ बात को मानते हैं।
वर्तमान में जितने भी वैज्ञानिक हैं उन्होंने भी तो अपने सिद्धांतों और खोज को दुनिया को बताने के लिए पुत्सको का ही सहारा लिया है ना, उन्होंने भी तो पुस्तक लिख कर ही इन सिद्धांतों को देश दुनिया के अंदर फैला दिया।
भारत में हुए ऋषि महर्षियों ने भी आज से हजारों साल पहले किए गए आविष्कारों को पुस्तकों के अंदर विस्तार से वर्णित किया था। उनकी जो भाषा थी वह या तो तमिल संस्कृत थी या फिर गोंडवाना लिपि थी जो विश्व की सबसे प्राचीन भाषाओं में से एक हैं।
कुछ लोग सवाल उठाते हैं की आर्यभट्ट ने अगर 0 की खोज की तो रावण के दस सर की गिनती केसे की गई थी??
रावण के समय में 0 गणितीय भाषा में ज्ञात नही था परंतु संस्कृत के अंदर तो ज्ञात था न, संस्कृत के अंदर शून्य कहा जाता था 0 को, जिसे बाद में कालांतर में एक ऋषि आर्यभट्ट ने गणितीय रूप में वर्णित किया।
भारत के प्राचीन ग्रंथो को केवल काल्पनिक बताने वाले ये केसे भूल जाते हैं की अगर रामायण काल्पनिक था तो महर्षि वाल्मिकी जी ने पंचवटी से श्रीलंका जाने वाले हवाई मार्ग की खोज आज से हजारों साल पहले केसे कर दी थी??
उन्हें केसे पता था की पंचवटी से श्री लंका जाने वाला सबसे सीधा हवाई रास्ता हम्पी, लेपाक्षी, और रामेश्वरम से ही केसे जाता हैं।
भारत के प्राचीन वैदिक वैज्ञानिक इतिहास को छुपाने के लिए लाखो कोशिश की गई, रामसेतु को भी काल्पनिक बताने की कोशिश की गई परंतु आधुनिक युग में जब सैटेलाइट की खोज की गई तो भारत के धनुष कोटि से श्रीलंका के मन्नार एक समुद्र में एक प्राचीन पूल के अवशेष मिले जो शायद दुनिया का सबसे प्राचीन पूल हैं।
इसे NASA ने Addams Bridge का नाम दिया।
तमिलनाडु के धनुष्कोटि से श्रीलंका के मन्नार की तरफ जाने वाले समुद्री रास्ते में कई जगह पर समुद्र की गहराई नाम मात्र की रह जाती हैं। इसके बीच में 7 एसे बड़े बड़े टापू हैं जो समुद्र के मध्य में जमीन के होने का एहसास कराते हैं। 
आज तकनीक आ जाने के कारण आप वहां तक नाव में जाकर इस अनोखे हजारों साल पहले भारतीय वैज्ञानिकों के चमत्कार को अपनी आंखों से देख सकते हैं।
वैज्ञानिकों का मानना हैं की धनुष्कोटि और मन्नार के मध्य एसे करीबन 8 टापू हैं जो सीधे एक लाइन में हैं। 
किसी समय ये उस रामसेतु का हिस्सा थे जो भगवान श्री राम ने लंका जाने के लिए निर्माण किया था।
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