Unemployment in India over the last decade.बेरोजगारी

बेरोजगारी एक ऐसा सामाजिक और आर्थिक मुद्दा है जो किसी भी देश की प्रगति और स्थिरता पर प्रभाव डालता है। भारत जैसे विशाल और विविधता से भरे देश में, बेरोजगारी एक गंभीर समस्या बनी हुई है। बेरोजगारी का मतलब उस स्थिति से है जब काम करने की उम्र के लोग, जो कार्य करने के योग्य हैं और कार्य करने की इच्छा रखते हैं, उन्हें रोजगार नहीं मिल पाता। यह स्थिति देश की अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव डालती है और सामाजिक समस्याओं को भी जन्म देती है। भारत में बेरोजगारी एक गंभीर समस्या है, जो देश की आर्थिक और सामाजिक प्रगति में बाधा डालती है। इसके पीछे कई कारण हैं, जिनका समाधान किए बिना बेरोजगारी की समस्या को दूर करना मुश्किल है। आइए भारत में बेरोजगारी के मुख्य कारणों पर विस्तार से चर्चा करें:

भारत में बेरोजगारी की समस्या के मुख्य कारण

भारत की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है, और इसके साथ ही रोजगार की मांग भी बढ़ती जा रही है। हालांकि, देश में रोजगार के अवसर जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में नहीं बढ़ पा रहे हैं, जिससे बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार रह जाते हैं। हर साल लाखों युवा रोजगार की तलाश में बाजार में आते हैं, लेकिन पर्याप्त अवसर न होने के कारण बेरोजगारी बढ़ती है। भारत की शिक्षा प्रणाली रोजगार के लिए आवश्यक कौशल प्रदान करने में विफल रही है। अधिकतर शिक्षण संस्थान सिर्फ डिग्री प्रदान करते हैं, लेकिन उद्योगों की जरूरत के अनुसार व्यावसायिक और तकनीकी कौशल पर ध्यान नहीं दिया जाता।

इस वजह से कई लोग शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद रोजगार के लिए आवश्यक कौशल की कमी के कारण बेरोजगार रह जाते हैं। भारत, जो एक तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था है, वहां बेरोजगारी की समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। विशेष रूप से कोविड-19 महामारी के बाद बेरोजगारी की दर में अचानक से इज़ाफा हुआ है। भारत में बेरोजगारी की दर ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में चिंता का विषय है। शिक्षित युवा वर्ग भी इस समस्या से प्रभावित है, जहां डिग्रियां तो हैं, पर रोजगार नहीं।

What is the unemployment rate in India over years?

भारत में बेरोजगारी दर पिछले कुछ वर्षों में बदलती रही है। यह दर विभिन्न आर्थिक, सामाजिक, और राजनीतिक कारकों के कारण प्रभावित होती है। यहां पर हाल के वर्षों में भारत की बेरोजगारी दर का विवरण दिया गया है:

2016-2023 के बीच बेरोजगारी दर:

  1. 2016: लगभग 5.5%
    नोटबंदी (2016) के बाद आर्थिक गतिविधियों में कमी आई, जिससे बेरोजगारी में थोड़ी वृद्धि हुई।
  2. 2017: लगभग 6.1%
    नोटबंदी और जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) के कार्यान्वयन का प्रभाव दिखा, जिससे छोटे व्यवसायों और उद्योगों पर असर पड़ा और रोजगार के अवसर कम हुए।
  3. 2018: लगभग 6.3%
    इस वर्ष भी बेरोजगारी दर में मामूली वृद्धि देखने को मिली। युवाओं में शिक्षित बेरोजगारी दर अधिक रही।
  4. 2019: लगभग 7.6%
    इस समय भारत में बेरोजगारी दर में वृद्धि हुई और यह 45 वर्षों में सबसे अधिक स्तर पर पहुंच गई। ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों की कमी थी।
  5. 2020: लगभग 7.1% – 27%
    कोविड-19 महामारी के कारण बेरोजगारी दर में भारी वृद्धि देखी गई। अप्रैल 2020 में लॉकडाउन के दौरान बेरोजगारी दर 27% तक पहुंच गई, जो देश की अर्थव्यवस्था पर बड़ा आघात था। हालांकि, बाद में यह दर घटकर लगभग 7.1% हो गई जब लॉकडाउन में ढील दी गई।
  6. 2021: लगभग 7.9%
    महामारी के बाद आर्थिक सुधार के बावजूद बेरोजगारी दर अपेक्षाकृत उच्च रही। विभिन्न क्षेत्रों में नौकरी की रिकवरी धीमी थी, और छोटे-मझोले उद्योगों पर अब भी असर था।
  7. 2022: लगभग 7.5%
    2022 में बेरोजगारी दर में थोड़ी कमी आई, लेकिन देश के कई हिस्सों में रोजगार के अवसर सीमित रहे। शहरी क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ने लगे, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में समस्या बनी रही।
  8. 2023: लगभग 7.8%
    2023 में बेरोजगारी दर लगभग 7.8% के आसपास रही। आर्थिक सुधार के बावजूद, भारत में बेरोजगारी की समस्या बरकरार है, खासकर युवाओं में शिक्षित बेरोजगारी अधिक है।

बेरोज़गारी से निपटने के लिए मोदी सरकार को क्या करना चाहिए?

बेरोज़गारी भारत में एक गंभीर समस्या बन चुकी है। तेजी से बढ़ती जनसंख्या, शिक्षा प्रणाली में खामियाँ, और आर्थिक अस्थिरता जैसी समस्याओं ने इसे और जटिल बना दिया है। नरेंद्र मोदी की सरकार ने रोजगार सृजन और आर्थिक सुधारों की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, लेकिन बेरोज़गारी से पूरी तरह निपटने के लिए अभी और ठोस प्रयासों की आवश्यकता है। इस लेख में हम उन प्रमुख कदमों पर चर्चा करेंगे, जो मोदी सरकार को बेरोज़गारी की समस्या को हल करने के लिए उठाने चाहिए।

1. कौशल विकास कार्यक्रमों का विस्तार

मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) की शुरुआत की थी, जिसका उद्देश्य युवाओं को उद्योगों की मांग के अनुसार कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना है। लेकिन यह योजना अभी भी बड़े पैमाने पर सभी युवाओं तक नहीं पहुंच पाई है। सरकार को इस योजना का विस्तार ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों तक करना चाहिए। इसके लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:

  • व्यावसायिक शिक्षा का विस्तार: स्कूल और कॉलेज स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा को बढ़ावा देना चाहिए ताकि युवा पहले से ही रोजगार-उन्मुख कौशल प्राप्त कर सकें।
  • ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट्स की संख्या बढ़ाना: देश के हर हिस्से में कौशल विकास केंद्र स्थापित किए जाएं, ताकि हर कोई इनका लाभ उठा सके।
  • उद्योगों के साथ साझेदारी: सरकार को उद्योगों के साथ साझेदारी कर उन कौशलों पर ध्यान देना चाहिए, जिनकी मांग बाजार में है।

2. स्टार्टअप और उद्यमिता को बढ़ावा देना

बेरोज़गारी से निपटने का एक प्रमुख तरीका स्वरोजगार को प्रोत्साहित करना है। मोदी सरकार ने स्टार्टअप इंडिया और मुद्रा योजना जैसी योजनाएं शुरू की हैं, जिनका उद्देश्य उद्यमिता को बढ़ावा देना है। लेकिन इन योजनाओं को और प्रभावी बनाने की जरूरत है।

  • निवेशकों को प्रोत्साहन: सरकार को निवेशकों को प्रोत्साहित करने के लिए टैक्स छूट और अन्य सुविधाएं प्रदान करनी चाहिए, ताकि वे अधिक से अधिक स्टार्टअप्स में निवेश कर सकें।
  • मुद्रा लोन की उपलब्धता में सुधार: छोटे और मझोले उद्योगों के लिए मुद्रा लोन की प्रक्रिया को आसान और पारदर्शी बनाना चाहिए ताकि ज्यादा लोग इसका लाभ उठा सकें।
  • महिला उद्यमिता: विशेष रूप से महिलाओं को स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। इसके लिए महिलाओं के लिए विशेष लोन और प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए जा सकते हैं।

3. कृषि क्षेत्र में सुधार

भारत की बड़ी आबादी कृषि पर निर्भर है, लेकिन यह क्षेत्र रोजगार के अवसर प्रदान करने में उतना सक्षम नहीं है जितना होना चाहिए। मोदी सरकार को कृषि क्षेत्र में सुधार लाने के लिए निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए:

  • कृषि से संबंधित उद्योगों का विकास: ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि से संबंधित उद्योगों, जैसे कि खाद्य प्रसंस्करण, डेयरी, और कपास उद्योग को बढ़ावा देना चाहिए, जिससे ग्रामीण रोजगार के अवसर बढ़ सकें।
  • आधुनिक तकनीकों का उपयोग: किसानों को आधुनिक तकनीकों और उपकरणों से परिचित कराना चाहिए, ताकि उनकी उत्पादन क्षमता बढ़े और कृषि में अधिक रोजगार के अवसर पैदा हो सकें।
  • मूल्य वर्धित कृषि: किसानों को फसल उत्पादन के साथ-साथ मूल्य वर्धित कृषि उत्पादों, जैसे जैविक उत्पादों, के उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए, ताकि वे अपनी आमदनी बढ़ा सकें।

4. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) क्षेत्र को मजबूत करना

MSME सेक्टर भारतीय अर्थव्यवस्था का मेरुदंड है और यह लाखों लोगों को रोजगार प्रदान करता है। लेकिन इस क्षेत्र को अभी भी वित्तीय सहायता, बुनियादी ढांचे की कमी, और जटिल सरकारी नीतियों का सामना करना पड़ता है। मोदी सरकार को MSME सेक्टर को मजबूत करने के लिए इन पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए:

  • सरल वित्तपोषण: MSME के लिए बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों से ऋण की प्राप्ति को सरल और सुलभ बनाना चाहिए।
  • डिजिटल और तकनीकी सहायता: छोटे उद्योगों को डिजिटल तकनीक और आधुनिक व्यापार प्रक्रियाओं से जोड़ने के लिए विशेष प्रशिक्षण और सहायता प्रदान की जानी चाहिए।
  • निर्यात को बढ़ावा देना: छोटे और मध्यम उद्यमों को अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में अपने उत्पाद बेचने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए, जिससे रोजगार के नए अवसर उत्पन्न हो सकते हैं।

5. शिक्षा प्रणाली में सुधार

बेरोजगारी की समस्या का एक बड़ा कारण है कि हमारी शिक्षा प्रणाली युवाओं को रोजगार के लिए तैयार नहीं करती। मोदी सरकार को शिक्षा प्रणाली में सुधार की दिशा में कार्य करना चाहिए ताकि युवाओं को रोजगार-उन्मुख शिक्षा और कौशल मिल सके।

  • नई शिक्षा नीति (NEP) के तहत व्यावहारिक शिक्षा को प्राथमिकता देना।
  • इंडस्ट्री-एकेडेमिया कोलैबोरेशन: कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में उद्योगों के साथ साझेदारी करके छात्रों को इंटर्नशिप और लाइव प्रोजेक्ट्स में शामिल करना।
  • डिजिटल शिक्षा का विस्तार: ऑनलाइन शिक्षा और डिजिटल कौशल विकास को बढ़ावा देना, ताकि अधिक से अधिक युवा तकनीकी रूप से सक्षम बन सकें।

6. महिला श्रम शक्ति की भागीदारी बढ़ाना

महिलाओं की श्रम शक्ति में भागीदारी बढ़ाना भी बेरोजगारी से निपटने का एक प्रमुख उपाय है। महिलाओं को रोजगार में लाने के लिए सरकार को विशेष नीतियों और योजनाओं पर ध्यान देना चाहिए।

  • सुरक्षित कार्यस्थल: महिलाओं के लिए सुरक्षित और अनुकूल कार्यस्थलों का निर्माण।
  • फ्लेक्सिबल वर्किंग: महिलाओं को घर से काम करने की सुविधाएं प्रदान करना ताकि वे रोजगार में शामिल हो सकें।
  • महिला-उद्यमिता को बढ़ावा: महिलाओं के लिए विशेष स्वरोजगार योजनाओं का निर्माण।

Unemployment in Modi Govt.

बेरोज़गारी के प्रमुख कारणों में जनसंख्या वृद्धि सबसे बड़ा कारण माना जा सकता है। जब परिवार 20-25 बच्चे पैदा करेंगे, तो यह अपेक्षा करना कि सबको सरकारी नौकरी मिले, क्या यह संभव है?

इन बच्चों की शिक्षा की हालत भी गंभीर है। बहुत से बच्चे शायद ही स्कूल में पाँचवीं कक्षा तक पहुँचते हैं और फिर भी यह उम्मीद करते हैं कि उन्हें सरकारी नौकरी मिलेगी। क्या सभी को कलेक्टर बनाया जा सकता है? कुछ को व्यवसाय करना होगा, कुछ को निजी काम, लेकिन यह मानसिकता है कि सिर्फ सरकारी नौकरी ही सब कुछ है।

बेरोज़गारी को अक्सर दिखावे के मुद्दे के रूप में पेश किया जाता है। यदि इसे गहराई से देखा जाए, तो शिक्षा स्तर पर सुधार की आवश्यकता है, परंतु आज कौशल विकास योजनाओं के ज़रिए इसे ठीक किया जा सकता है। सरकार ने कई योजनाएँ निकाली हैं ताकि लोगों के कौशल को विकसित किया जा सके, लेकिन यह योजनाएँ ज़मीन पर सही तरह से लागू नहीं हो पाई हैं।

अगर इन योजनाओं पर सही से काम किया जाए, तो रोजगार के अवसर खुद ही बन सकते हैं। आज व्यवसाय और छोटे-मोटे धंधे भी रोजगार दे रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, यदि कोई दुकान चला रहा है और रोज़ एक लाख रुपये का कारोबार कर रहा है, तो क्या वह बेरोजगार माना जाएगा? लेकिन कुछ लोग इस स्थिति को भी बेरोजगारी की श्रेणी में डालते हैं।

हमारी मानसिकता इतनी विकृत हो चुकी है कि हर चीज़ में बेरोजगारी का मुद्दा ही खोजा जाता है। हाल ही में कुछ लोग बेरोजगारी का दिखावा कर रहे थे, लेकिन असली मुद्दे पर ध्यान देना ज़रूरी है। कौशल विकास और शिक्षा में सुधार से बेरोजगारी को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

Unemployment Rate on a Declining Trend In India

जनसंख्या वृद्धि: बेरोजगारी का मुख्य कारण

आज के समय में बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा बन चुका है, लेकिन इसके पीछे छिपे असली कारणों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा। सबसे बड़ा कारण है जनसंख्या वृद्धि। जिस देश में लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही हो और परिवारों में 20-25 बच्चे हों, वहाँ हर व्यक्ति को रोजगार देना असंभव सा हो जाता है।

जब जनसंख्या तेजी से बढ़ेगी, तो संसाधन कम पड़ेंगे और नौकरियों की संख्या सीमित हो जाएगी। ऐसे में सरकार से यह उम्मीद करना कि वह हर व्यक्ति को सरकारी नौकरी देगी, यथार्थ से परे है। बेरोजगारी का असली समाधान जनसंख्या नियंत्रण से जुड़ा हुआ है, जो हमें गंभीरता से सोचना चाहिए।

सरकारी नौकरी पर अत्यधिक निर्भरता

हमारी मानसिकता में यह बात गहरी बैठी हुई है कि सिर्फ सरकारी नौकरी ही सम्मानजनक रोजगार है। लोग यह भूल जाते हैं कि निजी क्षेत्र, व्यवसाय, और उद्यमिता भी रोजगार के बड़े साधन हो सकते हैं। हर व्यक्ति कलेक्टर या अधिकारी नहीं बन सकता, और ना ही हर किसी के लिए सरकारी नौकरी संभव है।

सरकारी नौकरियों की संख्या सीमित होती है, जबकि युवा वर्ग की अपेक्षाएं इससे कहीं अधिक हैं। यह मानसिकता बदलने की आवश्यकता है कि सिर्फ सरकारी नौकरी ही सही रास्ता है। निजी क्षेत्र, स्टार्टअप्स और खुद का व्यवसाय शुरू करना भी रोजगार का बड़ा स्रोत हो सकता है, जिससे न केवल व्यक्ति स्वयं आत्मनिर्भर बनेगा बल्कि दूसरों को भी रोजगार प्रदान कर सकेगा।

कौशल विकास योजनाओं का सही से क्रियान्वयन आवश्यक

कौशल विकास योजनाएँ बेरोजगारी को कम करने का एक महत्वपूर्ण साधन हो सकती हैं, लेकिन इन योजनाओं का सही से क्रियान्वयन होना आवश्यक है। सरकार ने कई योजनाएँ निकाली हैं, जिनका उद्देश्य युवाओं को विभिन्न क्षेत्रों में प्रशिक्षित करना और उनकी कौशल क्षमता बढ़ाना है।

यदि इन योजनाओं का सही से उपयोग हो, तो युवाओं को नई नौकरियों के अवसर मिल सकते हैं और वे रोजगार पाने के लिए बेहतर तरीके से तैयार हो सकते हैं। कौशल विकास के माध्यम से हम न केवल बेरोजगारी को कम कर सकते हैं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी सशक्त बना सकते हैं।

व्यवसाय भी रोजगार का साधन है

सरकारी नौकरी के बजाय लोगों को व्यवसाय करने के लिए प्रेरित करना भी बेरोजगारी का समाधान हो सकता है। आज के समय में एक छोटा सा व्यवसाय भी रोजगार के अवसर प्रदान कर सकता है। यदि कोई व्यक्ति एक दुकान चला रहा है और अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहा है, तो वह बेरोजगार नहीं कहा जा सकता।

व्यवसाय को रोजगार का एक महत्वपूर्ण स्रोत मानकर इसे बढ़ावा देना चाहिए। युवा वर्ग को उद्यमिता की ओर प्रेरित करना चाहिए, ताकि वे खुद के लिए रोजगार बना सकें और साथ ही दूसरों को भी रोजगार प्रदान कर सकें। छोटे व्यवसाय से लेकर बड़े उद्योग तक, रोजगार के कई साधन उपलब्ध हैं, जिन्हें सही तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है।

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