महाभारत का युद्ध आज तक के इतिहास में सबसे बड़ा युद्ध था। इस युद्ध ने अनुमानित 5 अरब लोगो की मृत्यु हुई थी। जिस समय महाभारत का युद्ध हुआ था तब अखंड भारत था जो आज के समय के कई देशों को मिलाकर बना हुआ था।
Mahabharata
महाभारत के युद्ध की जब भी बात होती हैं तो इस युद्ध के कुछ किरदार ऐसे हैं जिनके बारे में बात हुए बिना रह नहीं पति हैं
जैसे की
पितामह भीष्म
गुरु द्रोण
अर्जुन
मामा शकुनि
दुर्योधन
अश्वथामा
भीम
इनमे से हर एक किरदार का अलग चरित्र हैं।
महाभारत के किरदारों की बात और हमने भगवान श्री कृष्ण का नाम नहीं लिया तो आखिर क्यों?? आप में से कुछ लोग जरूर ऐसा सोच रहे होंगे और उसका कारण ये हैं की भगवान श्री कृष्ण कोई किरदार नही थे वे तो साक्षात नारायण का नर रूप थे।
अर्जुन को धनुर्विद्या की जब भी बात आती हैं तो बिना गुरु द्रोण के वो संभव नही थी। गुरु द्रोण ही वो पहले इंसान थे जिन्होंने अर्जुन की इस क्षमता को पहचाना और उसे अपनी शिक्षा से विकसित किया।
What Is Brahmastra In Ancient Indian War History??
ब्रह्मास्त्र वो हथियार था जिससे पूरी धरती का सम्पूर्ण विनाश किया जा सकता था और ये एक दिव्यास्त्र था जिसे मंत्र द्वारा साधना करने के बाद में ही प्रयोग में लिया जा सकता था।
महाभारत के युद्ध में लड़ने वाले वीरों में केवल कुछ ही महावीर एसे थे जिन्हे ब्रह्मास्त्र का ज्ञान था, और उनमें से एक था दुर्योधन का परममित्र और गुरु द्रोण का इकलौता पुत्र “अश्वत्थामा”।
Why Did Dronacharya Give Brahmastra to Ashwatthama??
कौरवों और पांडवों में केवल अर्जुन ही एकमात्र ऐसा योद्धा था जी ब्रह्मास्त्र का ज्ञान रखता था। कौरवों के पक्ष की तरफ से दो योद्धा एसे थे जो जन्म से तो कौरव नही थे परंतु कौरव राजकुमार दुर्योधन के परम मित्र थे और इन दोनो ने अपनी मित्रता हमेशा निभाई।
अंगराज कर्ण और गुरु द्रोण के पुत्र अश्वत्थामा भी ब्रह्मास्त्र का ज्ञान रखते थे। अंगराज कर्ण ने इसका ज्ञान अपने गुरु परशुराम जी से प्राप्त किया था जबकि अश्वत्थामा ने इसका ज्ञान अपने पिता गुरु द्रोणाचार्य से प्राप्त किया था।
अर्जुन और हस्तिनापुर के बाकी राजकुमार गुरु द्रोण से शिक्षा प्राप्त करने के लिए उनके आश्रम में आ गए थे तो अश्वत्थामा और कौरवों ने ज्येष्ठ राजकुमार दुर्योधन के मध्य मित्रता हो गई थी।
गुरु द्रोणाचार्य अपने सभी शिष्यों को समान प्रेम करते थे और अपने पुत्र अश्वत्थामा को भी इन राजकुमारों के साथ ही शिक्षा देते थे। अर्जुन ने अपनी लगन और धनुर्विद्या के प्रति अपने त्याग और समर्पण की भावना से गुरु द्रोणाचार्य का मन मोह लिया था। गुरु अपने उस शिष्य को हमेशा अपना पूर्ण ज्ञान देता हैं जो पूर्ण समर्पण की भावना से आदर सहित शिक्षा को ग्रहण करे।
अर्जुन धीरे धीरे धनुर्विद्या में पारंगत हो चुका था। गुरु द्रोणाचार्य अब उसे दिव्यास्त्रों की शिक्षा भी देने लगे थे। गुरु द्रोणाचार्य अर्जुन को हमेशा सुबह सूर्योदय से पहले दिव्यास्त्रों का ज्ञान देने आश्रम के एक अलग कोने में जाया करते थे जहां थोड़ी शांति ज्यादा थी।
मामा शकुनि के द्वारा पांडवों के प्रति द्वेष की भावना दुर्योधन के बालमन में ही डाल दी गई थी जिसके कारण वो अपने चाचा पांडु के पांचों पुत्रों से नफरत करने लगा था।
एक बार दुर्योधन ने गुरु द्रोणाचार्य और अर्जुन को सूर्योदय से पहले आश्रम के दूसरे कोने के अंदर जाकर दिव्यास्त्रों की शिक्षा लेते हुए देख लिया जिसके बाद उसने आश्रम में आकर अपने मित्र गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा को मिलकर सारी बात बताई और उसे गुरु द्रोणाचार्य के बारे में यह कहा कि अर्जुन उनको तुमसे भी ज्यादा प्रिय है इसलिए वे अर्जुन को तो दिव्यास्त्रों की शिक्षा दे रहे हैं परंतु तुम्हें दिव्यास्त्र की शिक्षा नहीं दे रहे हैं।
दुर्योधन के मुंह से ये सारी बाते सुन कर अश्वत्थामा ने उसे बताया कि वह अपने पिता से दिव्यास्त्रों की शिक्षा ले चुका है। दुर्योधन अश्वत्थामा को बताता है कि वह शायद उसे ब्रह्मास्त्र का ज्ञान दे रहे हैं जो कि इस सृष्टि का सबसे भयंकर अस्त्र है।
जिससे संपूर्ण विनाश संभव है। अश्वथामा के मन में यह बात अब थोड़ी बैठ गई थी कि उसके पिताजी अर्जुन को उससे ज्यादा महत्व कैसे दे सकते हैं?? और ब्रह्मास्त्र का ज्ञान उसे ना देकर अर्जुन को कैसे दे सकते हैं??🤔🤔
अश्वत्थामा घर गया और अपनी माता से इस बारे में बताया। जब गुरु द्रोणाचार्य घर में आए तो उनसे इस बात पर चर्चा की की आप ने अर्जुन को तो ब्रह्मास्त्र का ज्ञान दे दिया परंतु आप मुझे ब्रह्मास्त्र का ज्ञान नहीं दे रहे हैं??
Ashwatthama Ne Guru Dronacharya Ko Kese Manaya??
गुरु द्रोणाचार्य समझ तो चुके थे की आखिर अश्वत्थामा के मन में ये बात आई केसे की में उससे कम प्रेम कार्य हूं?? जबकि मुझे सबसे ज्यादा प्रिय तो अपना खुद का पुत्र अश्वत्थामा ही हैं, परंतु फिर भी उन्होंने उनसे कहा कि ब्रह्मास्त्र धारण करने के लिए योद्धा में कुछ गुण होने आवश्यक है।
जो तुम में विद्यमान नहीं है,परंतु अश्वथामा यह सुनकर भी नहीं माना और अपने पिता और माता को भावनात्मक रूप से कमजोर करके आखिर इस बात के लिए मना ही लिया कि गुरु द्रोणाचार्य अर्जुन के साथ-साथ अश्वत्थामा को भी ब्रह्मास्त्र की शिक्षा देंगे।
अगले दिन से अर्जुन और अश्वत्थामा साथ-साथ ब्रह्मास्त्र की शिक्षा लेने के लिए गुरु द्रोणाचार्य के साथ सूर्योदय से पहले ही आश्रम के दूसरे कोने में जाकर पूजा अर्चना करने लग जाते थे।
अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र की पूरी शिक्षा ग्रहण नही की थी जबकि अर्जुन ने ब्रह्मास्त्र की पूर्ण शिक्षा गुरु द्रोणाचार्य से प्राप्त कर ली थी। इसके विपरित अश्वत्थामा ने यह तो सीख लिया था की ब्रह्मास्त्र को बुलाना केसे हैं परंतु अगर किसी परिस्थिति में ब्रह्मास्त्र को वापिस बुलाना पड़े तो उसके लिए किन मंत्रो का प्रयोग किया जाए ये उसने नही सीखा।
Kya Ashwatthama Ki Durdasha Ka Karan Uski Aadhi Shiksha hi Banj??
महाभारत ग्रंथ के अनुसार अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं और अपने पापो का फल भुगत रहा हैं। वो अमर तो हैं परंतु ये अमरत्व उसके लिए अभिशाप हैं।
महाभारत के युद्ध के अंत समय में भगवान श्री कृष्ण ने उसको एक श्राप दिया था जिसके कारण अश्वत्थामा के शरीर से निरंतर खून बहता रहता हैं। श्राप के अनुसार अश्वत्थामा को कोढ़ की बीमारी है।
भारत के कुछ हिस्सों में अक्सर अश्वत्थामा के आज भी जिंदा होने की खबरे फैलती रहती हैं। कुछ लोगो ने उसे देखने का दावा भी किया हैं जो बिलकुल वैसे ही दिखता हैं जैसे भगवान श्री कृष्ण ने श्राप में बताया था।
गुरु द्रोणाचार्य को पुत्रमोह ज्यादा था और उनका यही पुत्रमोह उनके पुत्र की आज की इस दुर्दशा का कारण बना।
गुरु द्रोण जानते थे कि अश्वत्थामा का मन एकाग्रचित नही हैं और वह दिव्यास्त्रों का प्रयोग करने में कुछ गलती कर सकता हैं परंतु फिर भी पुत्र मोह के वशीभूत होकर उन्होंने अपने पुत्र को सभी दिव्यास्त्रों को शिक्षा दी।
Kya Ashwatthama Aaj Bhi Mandir Me Pooja Karne Aate Hain??
मध्यप्रदेश में घने जंगलों में भगवान महादेव का एक मंदिर हैं जो पहाड़ की चट्टानों के नीचे बना हुआ हैं। मंदिर में पूजा करने वाले पुजारी और वहां आने वाले भक्तों का मानना हैं की उस मंदिर मे रोज सुबह ब्रह्ममुहुर्त में कोई दिव्य शक्ति आकर शिव जी का अभिषेक कर के जाती हैं जबकि मंदिर के द्वार बंद रहते हैं परंतु फिर भी कोई दिव्य शक्ति सुबह मंदिर के पुजारी के आने से पहले ही भगवान महादेव का जलाभिषेक कर के चली जाती हैं।
जब यह बात कुछ मीडिया हाउस वालो को पता चली तो मंदिर के अंदर जाकर वहां रात भर रुके कर कैमरे के द्वारा निगरानी कि गई परंतु फिर भी कोई अदृश्य शक्ति आई और भगवान महादेव का जलाभिषेक कर के चली गई और कैमरे वालो को पता तक नहीं चला।
अश्वत्थामा के मस्तिष्क पर मणि थी जो उसकी दिव्यता को प्रमाणित करती थी। गुरु द्रोण को यह पुत्र तपस्या करने के बाद आशीर्वाद के रूप में मिला था।
अगर आप अश्वत्थामा को श्राप क्यों दिया था भगवान श्री कृष्ण जी ने इसके बारे में जानना चाहते हैं तो इस ब्लॉग पर कॉमेंट कर के हमे बताए।
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जय श्री राम🙏🙏
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