जब कुछ दिन पहले ये किसान आंदोलन शुरू हुआ था तब किसी ने भी ये नहीं सोचा था कि एक दिन ये आंदोलन देश के गौरव के लिए अपमान का कारण बनेगा। जिस आंदोलन में जनसमर्थन नहीं होता है वो दम तोड़ ही देता है चाहे 1 दिन में तोड़े या फिर 50 दिन में। गणतंत्र दिवस जेसे शुभ दिन के अवसर पर देश की आन बान ओर शन के प्रतीक लाल किले के परिसर में अंदर घुसकर ओर तिरंगे के अलावा अन्य ध्वज फैलाकर देश के संविधान का अपमान किया है। किसान नेताओ ने अपने उग्र भाषण ओर दंगा फैलाने के इरादे से ये सब कुछ किया किया हो एसा अनुमान लगाया जा रहा है। कुछ किसान नेताओ के कुछ विडियोज मिले हैं जिनमें वो ट्रैक्टर रैली से पहले कुछ भड़काऊ बयान दे रहे हैं जिनसे लोगो का बहक कर गलत कदम उठाना स्वाभाविक है।
परन्तु ये घटना पूरी योजना के साथ की गई है पहले तय रास्ते से अलग जाना फिर पुलिसकर्मियों के साथ बदतमीजी करना ओर फिर दिल्ली की सबको पर हुड़दंग फैलाना ये तो किसी किसान का कृत्य नहीं हो सकता इन सब घटनाओं से ये साफ साफ प्रतीत होता है कि ये आंदोलन एक प्रयोग के रूप में किया जा रहा है कि किस तरीके से देश की सरकार को नए बनाए गए कानून को वापिस निरस्त करवाया जा सकता है क्योंकि आगे आने वाले कुछ समय में भारत सरकार जिस तरह के कानून लाने पर विचार कर रही है ओर जो लंबे समय से भारत की जनता की मांग भी हैं । अगर वो कानून पास हो जाते हैं तो देश के एक बहुत बड़े वर्ग चाहे वो राजनैतिक हो या फिर देशविरोधी मानसिकता वाला उन लोगो को उससे बहुत नुकसान होने वाला है। भारत की आम जनता अब जागरूक होने लगी है अब वो किसी ना किसी रूप से अपना समर्थन ओर विरोध जताने लगी हैं जिससे इन जेसे नेताओ को भी सबक मिलना शुरू हो चुका है।
जब उत्तरप्रदेश सरकार ओर केंद्र सरकार ने राकेश टिकैत ओर अन्य किसान नेताओ से दिल्ली में हुई हिंसा की जांच के बारे में जांच में सहयोग देने के लिए कहा तो मगरमच्छी आंसू बहा कर देश के आम किसान ओर मजदूर वर्ग जो कि बहुत भावनात्मक ओर भोले भाले हैं उनको बहला फुसला दिया।
कुछ राजनैतिक गिद्ध अब इस आंदोलन पर अपनी पैनी नजर बनाए हुए हैं उन्हें अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकने के लिए इससे बरिया ओर क्या मौका मिलेगा।
कुछ वामपंथी विचारधारा वाले लोग इस दंगे को भी सही ठहराने में लगे हुए हैं वो उस घटना को भी सही साबित करने में लगे हैं जो लाल किले पर दूसरा कोई धर्म ध्वज फहरा कर इन्होंने की, दिल्ली की सबको पर हुए हुरदंग को भी सही साबित करने की कोशिश की जा रही है ओर इसके लिए एक बहुत बड़ा वर्ग जो देश में माहौल बिगाड़ने में लगे हुए हैं वो लोग चाहे तो पैसे लगा रहे हैं इस आंदोलन पर माहौल बिगाडने के लिए या फिर जनता को बहका कर माहौल को ओर खराब करने को कोशिश की जा रही है।
गणतंत्र दिवस की घटना के बाद से इस किसान आंदोलन को एक जातिगत रुख देने की भी कोशिश की जा रही है। देश की एकता और अखंडता पर उंगलियां उठाई जा रही है।
26 जनवरी के दिन हुई हिंसा के बाद राकेश टिकैत ओर योगेंद्र यादव जेसे नेताओ में इन दंगाइयों से पल्ला झाड़ने कि कोशिश कि ये कह कर की दंगा करने वाले ओर माहौल बिगाडने वाले हमारे साथ के किसान नहीं जबकि भाजपा के लोग हैं फिर क्यो अगले कुछ ही दिन में राकेश टिकैत ओर अन्य किसान नेता उन दंगाइयों को छोड़ने के लिए सरकार से मांग कर रहे हैं। क्या अब वो उनके साथ के लोग नहीं हैं??
सब साथ के ही लोग हैं परन्तु जनता को बहकाने ओर जनसमर्थन हासिल करने के लिए ये सारा प्रपंच रचा जा रहा है ओर इस खेल में बहुत से लोग शामिल हैं। कुछ दिनों पहले खुले मंच से ये बोलने वाले की किसी भी पार्टी के नेता को मंच पर जगह नहीं दी जाएगी ये किसान आंदोलन हैं कोई राजनीति नहीं फिर क्यो आज इतने विपक्ष के नेता उसी किसान आंदोलन के मंच पर चढ़कर खुलेआम नारेबाजी करते फिर रहे हैं?? क्या अब ये आंदोलन किसान आंदोलन ना रह कर राजनैतिक आंदोलन बन गया है?? तो इसका उत्तर हैं हां ये आंदोलन एक राजनैतिक आंदोलन ही हैं जिसे किसान के नाम का अमलीजामा पहनाया जा रहा है।
जब ये बिल लॉकडाउन मे आए थे तब इसी राकेश टिकैत ने मुख्य मीडिया में बयान दिया था कि हम किसानों को कई सालों की प्रतीक्षा का अंत हो गया है तो फिर क्यो कुछ महीने बाद में ये लोग कुछ लोगो को लेकर माहौल बिगाडने में लगे हुए हैं।
देश में महिला बिगाड़ने के बाद भी विक्टिम कार्ड खेलकर जनता को बहकाने कें लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं ये नेता लोग,
जब सरकार ने किसानों से ये मुद्दा सुलझाने के लिए इतनी बार बातचीत की हैं फिर भी कोई हल क्यो नहीं निकला इसका अब तक?? तो इसका कारण ये हैं की ये नेता इसका हल चाहते ही नहीं है क्योंकि अंदर ही अंदर ये लोग भी जानते हैं कि बिल में किसान का कोई नुकसान नहीं हैं बिल से अगर किसी को नुकसान होगा तो हो है बिचोलिए ओर ये आंदोलन होने के मुख्य कारण ही ये बिचोलिए हैं। कोई भी किसान अपनी फसल को किसी ओर के भरोसे नहीं छोड़ता है ना ही इतने दिन तक अपने बेटे जेसे पाली हुई फसल को बिना देखभाल के छोर सकता है जो दिल्ली में धरने में बैठकर ये कह रहे हैं ना कि हम किसान हैं वो वास्तव में किसान नहीं है। जबकि किसान के वेश में बैठे बिचोलिए हैं जिनकी दुकान अब बंद होने वाली है।
इन बिल के आने के बाद कुछ नेताओ की गिरगिट की तरह रंग बदलने को शक्तिं का पता भी चलता हैं। कांग्रेस की सोनिया गांधी ने इन बिल को लाने के बारे में अपने चुनावी घोषणा पत्र में भी दिया था ओर जब अब ये बिल भाजपा सरकार ले आयी तो वो इसका विरोध करने लगी उससे पता चलता है कि अब ये सारा खेल राजनीति का हो रहा है।
अरविंद केजरीवाल ओर कपिल सिब्बल जेसे बड़े नेता जो इन बिल को लागू करने के पक्ष में थे ओर उनके इस बात के सबूत कई विडियोज मे मिल जाएंगे पर आज जब ये कानून बन चुके हैं तो इन नेताओ के ये बात पच नहीं रही है क्योंकि ये ही तो वो कुछ मुद्दे होते थे जिनके ऊपर ये पार्टियां हमेशा चुनाव लड़ती थी परन्तु करती कुछ नहीं थी ओर आज जब ये मोदी सरकार ने पूरा कर दिया तो इन लोगो को पता है कि अब इनका राजनैतिक कैरियर खतरे की घंटी बजा रहा है ओर इन्हे रेस मे बने रहने के लिए इन बिल का विरोध करना जरूरी हो गया है।
पिछले दिनों हुई घटना में पुलिस वालो को मारा गया उन पर हथियारों से वार किए गए बहुत से पुलिसकर्मी घायल हो गए थे परन्तु उन्होंने इन दंगाइयों पर बलप्रयोग नहीं किया क्योंकि वो जानते थे कि ये राजनैतिक गिद्ध इसी बात का अवसर ढूंढ रहें हैं कि कुछ लोग घायल हो कुछ मेरे तो हम अपनी राजनीति का खेल खेले।
जब दंगे के बाद में किसान नेताओ को इनकी जिम्मेदारी लेने के बारे में पूछा गया तो वो लोग कहते हैं कि गोली क्यो नही मेरी लाल किले में घुसने वाले के??
सरकार ये बात अच्छे से जानती है कि इन लोगो की दिल की इच्छा ये हैं की सरकार बलप्रयोग करे ओर कुछ लोग मरे तो ये राजनीति करे परन्तु सरकार ने वो किया नहीं तो इनके पास से एक ये मौका भी छीन गया कि अब सरकार पर क्या इल्जाम लगाया जाए तो फिर तरीका निकाला गया कि क्योंकि ये सारा मामला ही सरकार पर डाल दिया जाए ताकि हम मुक्त रह सके ओर हमे लोगो का साथ भी मिल जाए कि सरकार तो तानाशाह हैं।
ख्याली पुलाव बहुत पकाए हैं ओर अभी तक पकाए जा रहें हैं इन नेताओ के द्वारा परन्तु इसका कोई उत्तर अब नहीं मिलेगा सरकार इनसे 10 कदम आगे का सोचती हैं तभी तो देश संभाल रहे हैं वो लोग। देश की आम जनता को इस आंदोलन से बहुत ज्यादा तकलीफ हो रही है तभी तो इतने दिनों से जो अपने गुस्से को में मन में दबा के बैठे थे कि किसान के नाम पर हमारे ऊपर लांछन लग जाएगा परन्तु इन लोगो को हरकत के बाद वो सारे लोग इकट्ठा होकर इन लोगो को अब रास्ता खाली करने के लिए कह रहे हैं ओर उनका कहना ये भी है कि अगर ये लोग अपनी मर्ज़ी से नहीं गए तो हमे जोर जबरदस्ती से खाली करवाना भी आता है।
पिछले 3 से 3 दिन में हरियाणा ओर दिल्ली के आस पास के गांवों में पंचायतों का जोर चल रहा हूं इस दिक्कत का समाधान निकालने के लिए
सरकार से प्रार्थना हैं की इस मसले को जल्द से जल्द सुलझाए ओर किसी के साथ भी भेदभाव ने है एसा रास्ता निकाला जाए तो दंगो को शाजिस रचने वाले ओर दंगे में शामिल लोगो को दंड दिया जाना चाहिए भारतीय संविधान के तहत।
जय हिन्द जय भारत