भारत विविधता में एकता वाला देश हैं। हमारी भारतभूमि के कण कण से वीर निकले हैं जिन्होंने अपना और अपनी मातृभूमि का नाम केवल भारत मे ही नही अपितु पूरे संसार में ऊंचा किया हैं।
भारत अनेक महापुरुषों की जन्म स्थली रहा हैं।इस धरती से छत्रपति शिवाजी वो महाराणा प्रताप जी वीर योद्धा भी निकले हैं तो महर्षि वाल्मिकी और वेदव्यास जी जैसे हस्तलिखित रचनाओं के सबसे बड़े रचनाकार भी इसी धरती से निकले हैं।
महर्षि पाणिनि, महर्षि भारद्वाज जी महान ऋषि भी जय धरा की संतान थे।
Kya Jaati Vyavstha Sanatan Dharma Me Hamesa Se Astitva Me Thi??
भारत के हर राज्य में अलग अलग धर्म और संप्रदाय के लोग रहते हैं, जिनका रहन सहन और बोली अलग अलग होने के बावजूद भी वे सभी इस भारतभूमि के लिए अपने प्राणों की आहुति देने को हरदम तैयार रहते हैं।
भारत में सबसे बड़ा तबका हिंदू धर्म को मानने वालो का हैं, हिंदू धर्म में अनेक जातियां और संप्रदाय के लोग मिल जुल कर रहते हैं।
सनातन धर्म आज जातिगत व्यवस्था में बंटा हुआ हैं। कोई जाट को बड़ा बताता हैं तो कोई ब्राह्मण को, किसी जगह राजपूत अपने आपको बड़ा बताते हैं तो किसी जगह शुद्र अपने आपको बड़ा बताते हैं।
हर जगह भारत को और इसमें रहने वाले हिंदुओ को जातिगत व्यवस्था में बांट दिया गया हैं।
सनातन धर्म में जाती आधारित व्यवस्था विदेशी आक्रांताओं के आने के बाद अस्तित्व में आई हैं। उससे पहले भारत में जातिगत व्यवस्था का कोई अस्तित्व नहीं था। सनातन धर्म हमेशा कर्म आधारित व्यवस्था पर चला हैं। सनातन धर्म से संबंधित हर एक धार्मिक ग्रंथ में कहीं पर भी जातियों का जिक्र नहीं हैं, फिर आखिर ये जातियां आई कब और कैसे बनी और केसे आज पूरे भारत को इस जाती प्रथा ने खोखला कर दिया हैं।
सनातन धर्म मे सतयुग से ले के कलियुग तक कहीं पर भी जाती का जिक्र तक नहीं हैं। विश्व का सबसे बड़ी पुस्तक लिखने वाले वेदव्यास जी सम्मानित ऋषि हैं। स्वयं भगवान श्री कृष्ण भी उनके चरणों में वंदना करते थे। महर्षि वेदव्यास जी वर्ण से शुद्र थे उनका जन्म एक दासी के गर्भ से हुआ था परंतु उनको महर्षि का पद उनके त्याग उनकी तपस्या और उनके कठिन परिशर्म से मिला था। अगर सनातन धर्म में जाती का अस्तित्व होता तो उन्हें महर्षि का दर्जा कभी नही मिलता। शास्त्रों में साफ साफ लिखा हैं की मनुष्य के ब्राह्मण कुल में जन्म लेने मात्र से वो ब्राह्मण नही हो जाता हैं अगर उसके कर्म शुद्र वाले हैं तो वह ब्राह्मण कुल में जन्म लेने वाला व्यक्ति भी शुद्र वर्ण में ही गिना जाएगा।
Maharahi Valmiki Ji Ki Jaati Kya Thi??
सनातन धर्म चार वर्ण में विभाजित हैं।
1 ब्राह्मण
2 वैश्य
3 क्षत्रिय
4 शुद्र
हर एक वर्ण अपने कर्म के अनुसार विभाजित होता था जैसे ब्राह्मण का कर्म होता था वो ईश्वर को भक्ति कर पर राजा को सही रास्ता दिखाकर अपनी प्रजा का भला करने में सहायता करे। शास्त्रों में कहा गया हैं को ब्राह्मण को हमेशा संतोषी होना चाहिए।
जो ब्राह्मण कुल में जन्म लेने के बाद भी लोभ ओर दुराचारी हैं वो ब्राह्मण कुल में स्थान योग्य नहीं हैं इसलिए पुरातन काल में वर्ण इंसान के कर्म पर आधारित होते थे।
क्षत्रियों का मुख्य कार्य होता था अपने देश की सुरक्षा करना और युद्ध लड़ना। इसी तरह वैश्य का काम होता था व्यापार करना और शुद्र का काम होता था स्वच्छता और हर वर्ण के शुभ कामों में शुद्र वर्ण के लोगो को ही कुछ कार्य आवंटित होते थे। शुद्र वर्ण के लोग खेती बाड़ी भी करते थे जिसका जिक्र कई पुस्तकों में है।
Aaj Ki Jati Vyavstha Kab Se Astitva Me Hain??
जब से संसार में कलियुग का आरंभ हुआ कुछ नए धर्म वो संप्रदाय पनपने लगे। कुछ महत्त्वाकांक्षी लोगो ने अपनी गलतियों को छुपाने के लिए अपने अनुसार अपने धर्म के मानकों को परिवर्तित कर दिया।
ये लोग बहुत क्रूर होते थे और इन लोगो का मुख्य लक्ष्य विस्तारवाद और अपने धर्म का प्रसार करना था। आप इतिहास चेक कर सकते हैं पूरे संसार में एक से बढ़कर एक साम्राज्य हुए हैं परंतु सनातन धर्म का पालन करने वाले कभी भी अन्याय नहीं करते। भारत भूमि पर राजाओं में अगर युद्ध भी होते थे तो युद्ध जितने के बाद वहां की प्रजा को लुटा नही जाता था स्त्री का सम्मान किया जाता था। स्त्री को देवी का दर्जा दिया जाता था।
जब से विदेशी आक्रांताओं ने भारत पर हमले करने शुरू किए और जब उन्हें युद्ध में हार मिलने लगी तो वे सब बहुत मायूस हो गए।
इन सब को मालूम हो चुका था की भारत की आमने सामने की लड़ाई में कभी भी पराजित नहीं किया जा सकता हैं और न ही केवल कुछ ही क्षणों में इस विशाल देश पर कब्जा किया जा सकता हैं। भारत के वीर योद्धा जब रणभूमि में युद्ध के लिए निकलते थे न तो अपनी जान को हाथ पर ले कर जाते थे। मृत्यु को युद्ध की देवी मान कर वीरता से लड़ते थे और दुश्मनों का काल बन कर उनको ग्रास बना कर खा जाते थे।
जब इन क्रूर और निर्दई आक्रांताओं को भारत में घुसने का कोई कारगर उपाय नही मिला तो इन लोगो ने एक नया तरीका निकाला फुट डालो और राज करो वाली नीति।
अगर भारत में उनको अपना प्रभुत्व काबिज करना हैं तो भारत में रहने वाले लोगो को आपस में ही लड़ना होगा तभी हम तीसरा पक्ष बन कर इनका फायदा उठा सकते हैं और संसाधनों से भरी इस धरा को अकूत संपदा का फायदा उठा सकते हैं।
विदेशी आक्रांताओं की यही नीति इस देश में रहने वाले लोगो को भरी पड़ गई। भोली भाली जनता इन लोगो की बातो में आकर अपने ही भाईयो से लड़ने लगी। देश में आंतरिक युद्ध होने लगे और देश अलग अलग हिस्सों में समय के साथ विभाजित होता गया।
How Did They Established Cast System In Sanatan Dharma??
जब भारत में विदेशी व्यापार के बहाने आने लगे और अपने मालिको द्वारा दिए गए काम को करने लगे। वे भारत में रहने वाले चारो वर्ण के लोगो को आपस में भड़काने लगे।
मनुष्य का स्वभाव होता हैं वह सतगुण को देरी से धारण करता हैं जब को राजगुण को जल्दी अपनाता हैं।
सनातन धर्म को मानने वाले लोग आपस में ही लड़ने लगे। कुछ ब्राह्मणों में ये अहंकार आ गया था की वो लोग ही हैं जो ईश्वर से जुड़े रह सकते हैं। क्षत्रिय में ताकत का अभियान आ गया।
वैश्य अपनी धन संपदा का अभिमान करने लगे। भारत में धीरे धीरे वर्ण आपस में विभाजित होने लगे और अब सही मौका देखकर विदेशी आक्रांताओं ने हमले किए और देश को अलग अलग जगह से लूटा और उसके हिस्से कर दिए।
भारत में समय समय पर मां भारती के वीर सपूतों ने जन्म लिया और इन विदेशी लुटेरों को मुहतोड़ जवाब दिया।
जो ऊंच नीच का जहर इन विदेशी लुटेरों ने भर दिया था इसे काफी हद तक दूर किया गया परंतु वो कहते हैं ना कि अगर धागा एक बार टूट गया तो उसने गांठ ही लगानी पड़ती हैं वो पहले की तरह समान नही हो सकता।
समय समय पर अनेकों विदेशी आक्रांताओं ने भारत को लुटा और फिर बारी आई अंग्रेजो की।
अब तक जितने भी विदेशी लुटेरे आए थे उनमें सबसे ज्यादा बुद्धिमान ये ब्रिटेन वाले थे। इनको अच्छे से पता था कि भारत ज्ञान का खजाना हैं। इस देश पर अगर राज करना हैं तो पहले यहां को संस्कृति को बर्बाद करना पड़ेगा।
अंग्रेजी हुकूमत व्यापार के जरिए भारत में आई और यहां के राजाओं को ऐशो आराम में उलझा कर देश पर कब्जा कर लिया। अंग्रेजी हुकूमत ने सबसे पहले भारत में हमारी सांस्कृतिक विरासत गांव गांव में जो गुरुकुल हुआ करते थे उनको बंद किया और फिर अपनी पाश्चात्य संस्कृति को भारत पर हावी किया। भारत की मासूम जनता उनके बहकावे में आकर खुद को ही लूटवाती रही।
अंग्रेजो और मुगलों के समय में ही जातिप्रथा और सतीप्रथा अस्तित्व में आई। ये इतने क्रूर होते थे की अगर किसी राज्य पर हमला कर के उसे कब्जे में ले लिया तो वहां की औरतों के साथ बलात्कार और अनगिनत अत्याचार करते थे।
अंग्रेजो के समय में जाती प्रथा को ज्यादा बल मिला और फिर कुछ भारत के ही राजनेताओं ने अपना वर्चस्व बनाने के लिए उनका साथ दिया।
How Castism Survived After Independence ??
अंग्रेजो से आजादी तो देश को मिल गई परंतु इस जातिगत व्यवस्था से नही मिली। सनातन धर्म को आजादी के बाद और ज्यादा बिगाड दिया गया। भारत के भविष्य को जानबूझ कर आरक्षण नामक बेड़ियों से जकड़ दिया गया जो कि इसी जाति आधारित व्यवस्था का परिणाम था।
आजादी के बाद जब देश को खुद का संविधान मिला तो वो भी अन्य देशों से चुराया गया। इस संविधान में भारत को अनेक जातियों में विभाजित किया ओर सनातन धर्म की एकता को तोड़ दिया। कुछ महत्त्वाकांक्षी लोगो ने सत्ता के लालच में ऐसी निष्ठुर व्यवस्था और और ज्यादा बढ़ावा दिया और साल दर साल भारत आरक्षण और जातियों की बेड़ी में जकड़ता चला गया।
जब संविधान लागू हुआ था तो उसमें पिछड़े वर्गो को ऊपर उठाने के लिए 10 साल के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई थी जिसे बाद में नेताओ ने दलित वोट बैंक को बढ़ाने के लिए और सत्ता में बने रहने के लिए बढ़ाते गए।
क्या ब्राह्मण गरीब नहीं होते?? क्या गरीब ब्राह्मण परिवार के बच्चों को अच्छी शिक्षा का अधिकार नहीं??
गरीबी जाति देखकर नही आती, परंतु राजनेताओं ने अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए देश को निरंतर विभाजित किया।
भारत की जनता को हमेसा आपस में लड़ाते गए और हम लड़ते गए।
आज सनातन धर्म जातियों में बंटा हुआ हैं। भगवान किसी जाति विशेष के एकाधिकार में नही हो सकते। ईश्वर तो सबके हैं। कलियुग में संत रविदास जी सबसे बड़े उदाहरण हैं। वे जानते जरूर दलित परिवार में थे परंतु उनके कर्म एक सच्चे ब्राह्मण के थे तभी तो वे आज भी हमारे लिए पूजनीय हैं।
Thank You🙏🙏
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