गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा का दर्शन करना अशुभ माना जाता है। इस मान्यता के पीछे भगवान श्रीकृष्ण और स्यमंतक मणि की प्रसिद्ध पौराणिक कथा छिपी हुई है। कहा जाता है कि इस दिन यदि कोई व्यक्ति चंद्रमा का दर्शन करता है, तो उस पर झूठे आरोप लग सकते हैं। गणेश चतुर्थी भगवान गणेश की जन्मतिथि मानी जाती है और इसे बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। गणेश जी को प्रथम पूजनीय, विघ्नहर्ता और बुद्धि के देवता के रूप में पूजा जाता है। इस दिन भक्तगण भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करते हैं ताकि उनका जीवन विघ्नों से मुक्त हो और वे सफलताएँ प्राप्त कर सकें। साथ ही, इस दिन चंद्र दर्शन वर्जित है, जो इस कथा से जुड़ा है।
स्यमंतक मणि की उत्पत्ति और महाभारत में इसका महत्व
स्यमंतक मणि की उत्पत्ति से जुड़ी कथा महाभारत के प्रमुख पात्रों और घटनाओं से निकली है। यह मणि सूर्य देव द्वारा सत्राजित को दी गई थी, जो यदुवंश के एक प्रमुख सरदार थे। स्यमंतक मणि एक चमत्कारी मणि थी, जो प्रतिदिन असीमित सोना उत्पन्न करती थी। इसके कारण यह मणि अत्यधिक मूल्यवान और प्रतिष्ठित मानी जाती थी महाभारत में स्यमंतक मणि का जिक्र बहुत महत्वपूर्ण घटनाओं में आता है। जब भगवान श्रीकृष्ण ने इस मणि की महत्ता को जाना, तो उन्होंने सत्राजित को सलाह दी कि ऐसी कीमती वस्तु को राज्य के खजाने में जमा करवा देना चाहिए, ताकि इसका उपयोग पूरी जनता के कल्याण के लिए किया जा सके। परंतु सत्राजित ने श्रीकृष्ण की इस सलाह को ठुकरा दिया और मणि अपने पास ही रखी।

प्रसेनजीत की हत्या और झूठा आरोप
सत्राजित का भाई प्रसेनजीत एक दिन स्यमंतक मणि धारण कर शिकार पर निकला। शिकार के दौरान वह जंगल में मारा गया, और मणि गायब हो गई। जब प्रसेनजीत की मृत्यु की खबर फैली, तो द्वारका के लोग भगवान श्रीकृष्ण पर संदेह करने लगे।
चंद्र दर्शन और झूठे आरोप की शुरुआत:
कहा जाता है कि इस समय भगवान श्रीकृष्ण ने गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा का दर्शन कर लिया था, जिसके कारण उन पर यह झूठा आरोप लगा कि उन्होंने प्रसेनजीत की हत्या कर दी और मणि चुरा ली। यह घटना गणेश चतुर्थी पर चंद्रमा देखने से बचने की मान्यता का प्रमुख आधार मानी जाती है।
श्रीकृष्ण की स्यमंतक मणि की खोज
भगवान श्रीकृष्ण अपने ऊपर लगे झूठे आरोप को मिटाने के लिए स्यमंतक मणि की खोज में निकल पड़े। जंगल में उनकी खोज करते हुए, वे अंततः जाम्बवान की गुफा में पहुँचे। जाम्बवान, जो रामायण के समय के एक पात्र थे, ने मणि को सिंह से मारकर प्राप्त किया था और अब वह उनकी पुत्री दमयंती के पास थी। श्रीकृष्ण और जाम्बवान के बीच भयंकर युद्ध हुआ, जो 21 दिनों तक चला। जाम्बवान ने भगवान श्रीकृष्ण को पहचान नहीं पाया और यह युद्ध शुरू हो गया। परंतु जब जाम्बवान को एहसास हुआ कि भगवान श्रीकृष्ण कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं और वे वास्तव में भगवान विष्णु के अवतार हैं, तो उन्होंने युद्ध समाप्त कर दिया। जाम्बवान ने श्रीकृष्ण से क्षमा माँगी और उन्हें स्यमंतक मणि लौटा दी। साथ ही, उन्होंने अपनी पुत्री दमयंती का विवाह भी श्रीकृष्ण से कर दिया। श्रीकृष्ण मणि लेकर द्वारका वापस लौटे और मणि को सत्राजित को लौटा दिया। इस घटना के बाद, सत्राजित को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने अपनी पुत्री सत्याभामा का विवाह श्रीकृष्ण से कर दिया। उन्होंने मणि को भी श्रीकृष्ण को भेंट स्वरूप दे दी।
स्यमंतक मणि की प्राप्ति और सत्य की विजय
जाम्बवान ने श्रीकृष्ण से क्षमाप्रार्थना की और मणि उन्हें सौंप दी। साथ ही, उन्होंने अपनी पुत्री दमयंती का विवाह भी श्रीकृष्ण से करवा दिया।
जब श्रीकृष्ण मणि लेकर द्वारका लौटे, तो उन्होंने इसे सत्राजित को लौटा दिया और पूरे राज्य के सामने इस सत्य को उजागर किया कि प्रसेनजीत की हत्या उन्होंने नहीं, बल्कि सिंह ने की थी। इस प्रकार, श्रीकृष्ण ने अपने ऊपर लगे झूठे आरोप को पूरी तरह से खारिज कर दिया।
सत्य और धर्म की विजय
इस घटना के बाद, सत्राजित को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह भी श्रीकृष्ण से करवा दिया। उन्होंने श्रीकृष्ण से माफी माँगी और मणि को भी उनके पास भेंटस्वरूप दे दी।
यह कथा सत्य और धर्म की विजय का प्रतीक है। श्रीकृष्ण ने अपने ऊपर लगे झूठे आरोपों का साहसपूर्वक सामना किया और अंततः सत्य की जीत हुई। साथ ही, यह कहानी गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन से जुड़े धार्मिक विश्वासों का आधार भी है।