Lohargal History| Hindi| Aravali Mountains| Rajasthan|Jhunjhunu|Nawalgarh के लोहार्गल धाम का प्राचीन महत्व|

Rajasthan क्षेत्रफल की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा राज्य हैं। Rajasthan की धरती ने एसे रणबांकुरो को जन्म दिया हैं जो सर कटने के बाद भी युद्ध में वीरता से लड़ते थे।

Rajasthan का एक जिला हैं Jhunjhunu इस जिले ने देश को अनेक वीर सैनिक दिए है। वीरों की धरती झुंझुनूं में सबसे ज्यादा शहीद हैं इस देश के। 
इस Jhunjhunu की पवित्र धरती पर 60000 से ज्यादा भूतपूर्व सैनिक और करीबन 50000 के आस पास सैनिक वर्तमान में देश की सरहदी सीमाओं पर दुश्मनों को अपने हौसले से जवाब देकर इस धरती का मान बढ़ा रहे हैं।
Jhunjhunu की यह धरती केवल वीरों के लिए ही प्रसिद्ध नही हैं बल्कि इस धरती पर ऐसी कुछ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत मौजूद हैं जो महाभारत के समय से अब तक अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं।
Jhunjhunu जिले के Nawalgath तहसील में अरावली की पहाड़ियों के मध्य एक ऐसा तीर्थ स्थल मौजूद हैं जो लगभग 5000 साल से ज्यादा के समय से अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं।

Lohargal का इतिहास

Nawalgarh तहसील के Lohargal मे एक प्राचीन प्राकृतिक कुंड और सूर्य भगवान का अपनी पत्नी के साथ में एक मंदिर हैं।
स्थानीय लोगो की आस्था हैं की यह कुंड इंसान के पाप से उसको मुक्ति दिलाता हैं। इस कुंड का इतिहास भी बहुत रहस्यमई हैं। 
पुरातन ग्रंथो के अनुसार यह भगवान मत्स्य अवतार का स्थान हैं। भगवान श्री हरी विष्णु ने इसी जगह पर मत्स्य अवतार धर कर स्वयंभू मनु को एक नाव में बैठकर श्रृष्टि को बचाया था।
अरावली पर्वतमाला से घिरा हुआ यह वन्य क्षेत्र किसी समय में समुद्र हुआ करता था। इस जगह पर एक विशाल समुद्र हुआ करता था जो बाद में समय के साथ पहाड़ों और जंगलों में बदल गया।
महाभारत के समय में जब युद्ध के पश्चात पांडव अपनी मुक्ति के लिए भगवान से मार्ग पूछने गए तो उन्होंने उन्हें निर्देश दिया था की जहां पर पांडवों के सारे हथियार गल जायेंगे वहीं तीर्थ क्षेत्र उनकी मुक्ति का और पाप धोने का मार्ग बन सकता हैं।
महाभारत के युद्ध के पश्चात पांडव एक समय इस अरावली क्षेत्र में भी आए जब उन्होंने यहां के कुंड में अपने अस्त शस्त्रों के साथ स्नान किया तो उनके सारे हथियार इस कुंड के पुण्य प्रताप से पिघल कर इस कुंड में सम्मिलित हो गए।
पांडव के सारे हथियार इसी जगह पर गले थे इसीलिए इसे “लोहार्गल” कहा जाता हैं, अर्थात जहां आप लोहा भी गल गया हो।
एक और प्राचीन कहानी इस तीर्थ क्षेत्र की महिमा को दर्शाती हैं। उज्जैन के महा पराक्रमी राजा विक्रमादत्य के एक पुत्री थी जो बचपन से ही अपंग थी। राजा ने हर जगह उस बच्ची के निदान के लिए साधुओं से संपर्क किया परंतु उसका कोई हल नहीं निकला। 

Raja Vikramaditya in Lohargal

एक बार एक पहुंचे हुए साधु ने उन्हें बताया की राजन आपने पिछले जन्म में एक शिकार किया था एक बंदरी का जो आपके शिकार के कारण घायल हो कर एक पेड़ के ऊपर ही लटकी रह गई और उसने वहीं प्राण गंवा दिए, आपकी यह बेटी उसी बंदरिया का पुनर्जन्म हैं। 
साधु ने राजा को Lohargal के पवित्र कहते में जाकर उस बंदरिया के शव को पानी के पवित्र कुंड में बहाने के लिए आदेश दिया।
राजा ने साधु महाराज की बात मानकर लोहार्गल में आकर उस बंदरिया के मृत शरीर को ढूंढ़ कर पानी में बहा दिया और वापिस अपने राज्य की ओर चले गए। 
महल में जाकर राजा ने देखा की उसकी बेटी के दोनो पैर और एक हाथ तो सही हो चुका हैं परंतु अब भी उसका एक हाथ अपंग ही हैं। 
राजा विक्रमादित्य फिर से उन साधु महाराज की खोज में जंगलों में निकल पड़े, कई दिनों जंगल में गुजारने के बाद उन्हें एक दिन उन साधु के दर्शन हुए। राजा ने उन्हें सारी बात बताई और साधु से इस समस्या का निदान जानने की इच्छा प्रकट की, साधु ने राजा को बताया कि, उन्होंने उस बंदरिया का मृत शरीर जब लोहार्गल के पवित्र पानी में विसर्जित किया उस समय उसका हाथ उसी पेड़ कि टहनी से लटका हुआ रह गया था, आपको जाकर उस हाथ को भी पानी में बहाना होगा तभी आपकी बेटी पूर्ण रूप से सही होगी।
राजा विक्रमादित्य फिर से लोहार्गल की ओर निकल पड़े, इस बार उन्होंने उस हाथ को पेड़ से उतारकर पानी में बहा दिया।
राजा ने जब अपने राज्य वापिस जा कर देखा तो उनकी बेटी बिल्कुल सही हो चुकी थी, जो लड़की जन्म से अपंग थी वह लोहार्गल तीर्थ क्षेत्र की महिमा से अब बिल्कुल सही हो चुकी थीं ।
इस घटना के बाद राजा विक्रमादित्य ने यहां पर मंदिर और लोगो के रुकने के लिए कुछ धर्मशालाओं का निर्माण करवाया।
आज भी इस जगह पर भगवान सूर्यनारायण का सपत्नीक मंदिर हैं जो संसार का सबसे पहला मंदिर हैं जिसके भगवान सूर्य देव अपनी पत्नी के साथ विराजमान हैं।
लोहार्गल कुंड के बारे में स्थानीय लोगो और पुजारियों की मान्यता यह हैं की इस कुंड के अंदर कोई सतह नही हैं। 
इस कुंड के पिछे मंदिर के पीछे की तरफ एक प्राकृतिक कुंड हैं जिसके बारे में माना जाता हैं की इस कुंड की गहराई का आज तक कोई पता नहीं लगा पाया हैं।
मान्यता हैं की इस कुंड का निर्माण भीम ने किया था। लोहार्गल कुंड में गोमुख के द्वारा जो पानी आता हैं वह बिल्कुल शुद्ध होता हैं। कई वैज्ञानिकों द्वारा इस पानी की जांच की गईं और उन सबका यही मानना हैं की इस कुंड एक पानी में जरा भी अशुद्धियां नही हैं, यह बिल्कल
 साफ पानी हैं जिसे आम इंसान पी सकता हैं। 
श्रवण के महीने में इस कुंड से लाखो लोग पूरे देश में कावड़ लेने आते हैं।
Lohargal में अरावली की पहाड़ियों में बाबा मालखेत जी का सुंदर मंदिर है। जिस पर लोग अपनी मन्नत मांगने आज भी आते हैं।
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